श्रुत ज्ञान और उसके भेद
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श्रुत ज्ञान और उसके भेद -
श्रुत ज्ञान-श्रुत के कुल अक्षर १८४४६७४४०७३७०९५५१६१५ माने गए है!इनमें मध्यम पद के १६३४८३०७८८८अक्षरों के भाग देने से ११२८३५८००५ पद और ८०१०८१७५ अक्षर प्राप्त होते है !
श्रुत ज्ञान के भेद-
अंग प्रविष्ट;-आचारांग आदि बारह अंगो की रचना उक्त मध्यमपदों द्वारा करी जाती है इसलिए इनकी अंग प्रविष्ट संज्ञा है !और
अंग बाह्य-शेष अक्षर अंगों के बाहर पड़ जाते है इनकी अंग बाह्य संज्ञा है !
अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य श्रुत ज्ञान मे अंतर-
यद्यपि इन बाह्य अंगो और अंग प्रविष्ट की रचना गणधर देव ही करते है तथापि गण धर देव के शिष्यों और पर शिष्यों द्वारा जो शास्त्र रचे जाते है उनका समावेश अंग बाह्य श्रुत में ही होता है अंगप्रविष्ट और बाह्य अंग में यही अंतर है!
अंग प्रविष्ट के बारह भेद -
१-आचाराङ्ग-आचारांग में चर्या का विधान,आठ शुद्धि,पांच समिति,तीन गुप्ती आदि रूप से वर्णित है !
२-सूत्रकृतांग-इसमें ज्ञान-विनय,क्या कल्प्य है और क्या अकल्प्य है,छेदोपस्थापना , व्यवहार धर्म की क्रिया का निरूपण है !
३-स्थानाङ्ग-इसमें एक-एक ,दो-दो आदि रूप में अर्थों का वर्णन है !
४-संवायांग-इसमें सब पदार्थों की समानता रूप से समवाय का विचार किया गया है!जैसे धर्म-अधर्म,लोकाकाश और एक जीव के तुल्य असंख्यात प्रदेश होने से इन को द्रव्य रूप से समवाय कहा जाता है !
५-व्याख्या प्रज्ञप्ति-में जीव है या नहीं पर ६० हज़ार प्रश्नो के उत्तर है !
६-ज्ञातृ धर्मकथा-में अनेक आख्यान और उपाख्यान का निरूपण है !
७-उपासाकाध्यय नांग-में श्रावक धर्म का विशेष विवेचन किया गया है !
८-अंत:कृद्दशांग-इसमें प्रत्येक तीर्थंकर के काल में होने वाले दश-दश अंतकृत् केवलियों का वर्णन है जिनको भयंकर उपसर्ग सहने के बाद मुक्ति मिली थी !
९-अनुत्तरोत्पादिकदशांग-मे प्रत्येक तीर्थंकर के समय हुए उन दश दश मुनिया का वर्णन है जिन्होंने दारुण उपसर्गों को सहकर,पांच अनुत्तर विमानों में जन्म लिया !
१०-प्रश्न व्यकराणांग-में युक्ति और नयों द्वारा अनेक आक्षेप और विक्षेप रूप प्रश्नों का उत्तर दिया गया है !
११-विपाकसूत्रांग-में पुण्य और पाप के विपाक का विचार किया गया है !
१२-दृष्टिप्रवाद-में ३६३ मतो का निरूपण पूर्वक खंडन किया गया है!दृष्टिवाद के निम्न पांच भेद है !
१-परिक्रम-के पांच भेद -
(क)व्याख्याप्रज्ञप्ति-में पुद्गल,धर्म,अधर्म,आकाश और काल,भव्य सिद्ध, अभव्य सिद्ध जीव का वर्णन है !
(ख)द्वीपसागरप्रज्ञप्ति-में द्वीप और समुद्रों के प्रमाण तथा उनके अंतर्गत नाना प्रकार के दुसरे पदार्थों का वर्णन है !
(ग)जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति -इसमें भोगभूमि और कर्म भूमि में उत्पन्न हुए नाना प्रकार के मनुष्यों तथा अन्य तिर्यन्चों,पर्वत,दृह ,नदी,आदि का वर्णन है !
(घ)सूर्यप्रज्ञप्ति-में सूर्य की आयु,भोग,उपभोग,परिवार,ऋद्धि,गति और बिम्ब आदि की ऊंचाई का वर्णन है !
(ङ )चन्द्रप्रज्ञप्ति -में चन्द्रमा की आयु,परिवार,ऋद्धि,गति और बिम्ब की ऊँची आदि का वर्णन है !
२-सूत्र-सूत्र नाम का अर्थाधिकार जीव अबंधक है,अभोक्ता है,अकर्ता है,अलपक है , इत्यादि रूप से ३६३ भेद का खंडन करता है
३-प्रथमानुयोग-में ६३ श्लाखा पुरुषों का वर्णन पुराण रूप में है !
४-पूर्वगत-पूर्वगत के निम्न १४ भेद है -,
१-उत्पाद पूर्व-में जीव पुद्गलादि का जहाँ जब जैसा उत्पाद होता है का वर्णन है !
२-अग्रायणी पूर्व-में क्रियावाद आदि की प्रक्रिया और स्वासमय का वर्णन है !
३-वीर्यनुवाद -में छद्मस्थ और केवली की शक्ति,सुरेन्द्र असुरेंद्र आदि की ऋद्धियों , नरेंद्र चक्रवर्ती ,बलदेव आदि की सामर्थ्य,द्रव्यों के लक्षण आदि का निरूपण है !
४-अस्तिनास्ति प्रवाद-में पांचो आस्तिकाय और नयों का अस्ति-नास्ति आदि अनेक पर्यायों द्वारा विवेचन है !
५ -ज्ञानप्रवाद-पांचो ज्ञान और इन्द्रियों का विभाग का निरूपण है !
६-सत्य प्रवाद-में पूर्व में वागगुप्ती,वचन संस्कार के कारण,वचन प्रयोग बारह प्रकार की भाषाए,दस प्रकार के सत्य,वक्त के भेद,आदि का विस्तार से विवेचन है !
७-आत्म प्रवाद-में आत्मद्रव्य का छह जीव निकायों का अस्ति नास्ति आदि विविध भंगो का निरूपण है !
८-कर्म प्रवाद-कर्मो के बंध,उदय,उपशम,आदि दशाओं और स्थिति आदि का वर्णन है !
९-प्रत्याख्यान प्रवाद-में व्रत,नियम,प्रतिक्रमण,तप,आराधनादि तथा मुनित्व में कारण द्रव्यों के त्याग का विवेचन है !
१०-कल्याणानुवाद पूर्व-में सूर्य,चन्द्र,गृह,नक्षत्र,और तारागणों के चार क्षेत्र, उपपाद स्थान,गति,वक्रगति तथा उनके फलों का,पक्षी के शब्दों अ और अरिहंत अर्थात तीर्थंकर,बलदेव,वासुदेव,और चक्रवर्ती आदि के गर्भवतार आदि महाकल्याणकों का वर्णन है !
११-विद्यानुवादपूर्व में समस्त विद्याओं,आठ महा निमित्त,रज्जु राशि विधि,क्षेत्र,श्रेणी, लोक प्रतिष्ठा,समुद्घाट,आदि का विवेचन है !
१२-प्राणानुवाद पूर्व -शरीर चिकित्सा आदि अष्टांग,आयुर्वेद,भूतिकर्म,जांगुलिक कर्म (विष विद्या) और प्राणायाम के भेद प्रभेदों का विस्तार से वर्णन है !
१३-क्रिया विशाल पूर्व-लेखन आदि ७२ कलाओं का स्त्री सम्बन्धी चौसठ गुणों का, शिल्पकला का,काव्य संबंधी गुण दोष विधि का और छंद निर्माण कला का विवेचन है
१४-लोक बिन्दुसार-में आठ व्यवहार,चार बीज,राशि परिकर्म आदि गणित तथा समस्त श्रुत संपत्ति का वर्णन है !
चूलिका-के पांच भेद
१-जलगता -जल में गमन जल स्तम्भन के कारण भूत मंत्र ,तंत्र और तपश्चरण रूप अतिशय आदि का वर्णन करती है !
२-स्थलगता-पृथ्वी के भीतर गमन करने के कारण भूत मंत्र तंत्र दुसरे शुभ अशुभ कारणों का वर्णन करती है !
३-मायागता-इंद्रजाल आदि के कारण भूत मंत्र और तपश्चरण का वर्णन करती है !
४-रूपगता-सिंह,घोडा,हिरण आदि के स्वरुप के आकार रूप से परिणमन करने के कारण भूतमंत्र-तंत्र और तपश्चरण तथा चित्र काष्ठ लेप्य लें कर्म आदि के लक्षण का वर्णन करती है !
५-आकाशगता-आकाश में गमन करने के कारण भूत मंत्र तंत्र और तपश्चरण का वर्णन करती है
आंग बाह्य के १४ भेद -
१-सामायिक,२-चतुर्विंशति स्तव,३-वंदना,४-प्रतिक्रमण,५-वैनयिक,६-कृतिकर्म,७-दशवैकालिकोंका , ८-उत्तराध्ययन,९-कल्प्य व्यवहार,१०-कल्पयाकल्प्य,११-महाकल्पय,१२-पुण्डरीक,१३-महापुण्डरीक, १४-निषिद्दिका
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