जिन सहस्रनाम_ अर्थसहित - प्रथम अध्याय भाग १
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जिन सहस्रनाम_ अर्थसहित प्रथम अध्याय भाग १


प्रसिध्दाऽष्ट सहस्रेध्द लक्षणं त्वां गिरांपतिम् । नाम्नामष्टसहस्रेण तोष्टुमोऽभीष्टसिध्दये॥१॥
हे भगवन, हे भवतारक! आप समस्त वाणीयोंके स्वामी है, आपके एक हजार आठ लक्षण प्रसिध्द हैं, इसलिये हम भी अपनी शुभ और इष्ट सिध्दि के लिये एक हजार आठ नामोंसे आपकी स्तुति करते हैं ।

श्रीमान् स्वयम्भू र्वृषभ: शम्भव: शम्भू रात्मभू:।स्वयंप्रभ: प्रभु र्भोक्ता विश्वभूर पुनर्भव:॥२॥
1.
आप अनन्तचतुष्टयरूपी अन्तरंग तथा समवशरणरुपी बहिरंग लक्ष्मीसे सुशोभित है, इसलिए श्री- मानअर्थात श्री युक्त कहलाते है।
2.
आप अनेक कारणोंसे स्वयंभू कहलाते है, जैसे आप अपने आप उत्पन्न हुए है, आप बिनागुरुके समस्त पदार्थोंके जानते है, आप अपने हि आत्मामे रहते है, आपने अपने आप हि स्वयम् का कल्याण किया हुआ है, आप अपने हि गुणोसे वृध्दीको प्राप्त हुए है, अथवा आप केवलज्ञानदर्शनद्वारा समस्त लोकालोक मे व्याप्त है, अथवा आप भव्य जीवोंको मोक्षलक्ष्मी देनेवाले है, अथवा समस्तद्रव्योंके समस्त पर्यायोंको आप जानते है, अथवा आप अनायास हि लोकशिखर पर जाकर विराज मान होते है।
3.
आप वृष=धर्म से भा= सुशोभित है, इसलिये आपवृषभहै।
4.
आपके जन्म से हि सब जीवोंको सुख मिलता है, अथवा आप सुखसे उत्पन्न हुए है, अथवा आप का भव, शं=अत्युत्कृष्ट है, इसलिए आ  शंभव = संभव  कहलाते है।
5.
आप मोक्षरुप परमानंद सुख देने वाले है, इसलि  शंभु कहलाते है।
6.
आप अपने आत्मा के द्वारा कृतकृत्य हुए है, अथवा आप शुध्द-बुध्द चित् चमत्कारस्वरुप आत्मा मे हि सदैव रहते है, अथवा ध्यान के द्वारा योगीयोंकि आत्मा मे प्रत्यक्ष इसलिए आपआत्मभू कहे जाते है।
7.
आपको देखने के लिये प्रकाश की जरूरत नही अर्थात् आप स्वयम् ही प्रकाशमान हैं, आप स्वयम् की प्रभा मे दृग्गोचर होते हैं, इसलिए आपस्वयंप्रभकहे जाते हैं । 
8.
आप सबके स्वामी है, इसलिएप्रभू हो। 
9.
परमानंदस्वरूप सुखका उपभोग करनेवाले है इसलिएभोक्ता हो। 
10.
आप समस्त विश्व मे व्याप्त है, या प्रकट है और उसे एक साथ जानते भी हैं, इसलिएविश्वभू हो। 
11.
आपका जन्ममरणरूपी संसार शेष नहीं है, अर्थात् आप फिरसे जन्म नही लेंगे, इसलिएअपुनर्भव भि है।

विश्वात्मा विश्व लोकेशो विश्व तश्च क्षुरक्षर:। विश्वविद् विश्व विद्येशो विश्व योनिर नश्वर॥३॥
12.
जैसा कोई अपने आप को जानता हो, वैसेहि आप विश्व को जानते है, अथवा आप विश्व अर्थात केवलज्ञानस्वरुप है, इसलिए आपविश्वात्मा कहे जाते है।
13.
समुचे विश्वके समस्त प्राणीयोंके आप स्वामी अर्था इश है, इसलिए आपविश्वलोकेशके नामसे जाने जाते है।
14.
आपके केवलज्ञान् रुपी चक्षु समस्त विश्व को देख सकते है, इसलिए आपविश्वतचक्षु है। 
15.
आप कभी नाश होनेवाले नही है, इसलिये आपअक्षरहै।
16.
संपुर्ण विश्व आप को विदित है, आप उसे संपुर्ण तरह से जानते है, इसलिये आपविश्ववितहै। 
17.
विश्व कि समस्त विद्याए आपको अवगत है, अथवा सकल विद्याओंके आप ईश्वर है, अथवा आप सुविद्य गणधरादियोंके स्वामी है, इसलिये आपविश्वविद्येशकहे जाते है।
18.
सभी पदार्थोंका ज्ञान देने वाले है, इस अभिप्रायसे आप समस्त पदार्थोंके जनक है, इसलिएविश्वयोनि कहे जाते है। 
19.
आपके स्वरुप का कभी विनाश नही होगा इसलिए हे दयानिधान आपअविनश्वर भि कहे जाते है।

विश्वदृश्वा विभुर्धाता विश्वेशो विश्वलोचन:। विश्वव्यापी विधिर्वेधा शाश्वतो विश्वतोमुख:॥४॥
20.
समस्त लोकालोक को देखनेसे आपविश्वदृश्वा कहलाते है। 
21.
आप केवलज्ञान के द्वारा समस्त जगत् मे व्याप्त है, तथा आप जीवोंको संसारसे पार कराने समर्थ है तथा परम् विभुति युक्त है, इसलिए आपविभु कहे जाते है। 
22.
करुणाकर होनेसे आप सब जीवोंकि रक्षा करते है, तथा चतुर्गति के जिवोंका परिभ्रमणसे मुक्ति दाता है, इसलिए आपधाता कहे जाते है। 
23.
जगतके स्वामी होनेसे आपविश्वे  है। 
24.
आप के उपदेश द्वारा हि सब जीव सुख कि प्राप्ति का उपाय अर्थात मोक्षमार्ग देख पाते है, इसलिए आपविश्वलोचनकहे जाते है। 
25.
समुद्घघात के समय आप के आत्मप्रदेश समस्त लोक को स्पर्श करते है, तथा केवलज्ञान से तो आप समस्त विश्व मे प्रत्यक्ष रहनेसे आपविश्वव्यापी कहे गये है। 
26.
मोहांधकार को नष्ट करनेवाले है, इसलिएविधु कहे गये है। 
27.
धर्म के उत्पादक रहने से आपवेधा कहलाते है। 
28.
आप नित्य है, सदैव है, विद्यमान है, आप का नाश नही हो सकता है, इसलियेशाश्वतकहलाते है। 
29.
जैसे समवशरण मे आपके मुख चारो दिशाओंमे दिखते है, तथा आपका समवशरण मे दर्शनमात्र जीवोंके चतुर्गति के नाश का कारण बनता है, अथवा जल (विश्वतोमुख) के समान कर्मरुपी मल को धोनेवाले है, इसलिये आपविश्वतोमुखकहे जाते है। 

विश्वकर्मा जगज्ज्येष्ठो विश्वमुर्ति र्जिनेश्वर:। विश्वदृग् विश्व भूतेशो विश्वज्योति रनीश्वर:॥५॥
३०. आपके अनुसार कर्महि संसार अर्थात विश्व चलनेका कारण है, तथा आपने विश्व को उपजिवीका के लिए छ्ह कर्मोंका उपदेश दिया, इसलिए आपविश्वकर्मा कहे गये। 
३१. आप जगत् के समस्त प्राणियोमें ज्येष्ठ ( ज्ञानसे, ज्ञानवृध्द ) है, इसलिजगज्ज्येष्ठकहे जाते है। 
३२. आपमे हि समस्त विश्व के ज्ञान कि प्रतिमा अर्थात मूर्ती है, इसलिए आपविश्वमूर्ती कहे गये है। 
३३. समस्त अशुभकर्मोंका नाश करनेकि वजह से ४ से १२ गुणस्थान वाले जीवोंको जिन कहते है आप इन सब जिनोंकेभि ईश्वर है, इसलिये आपजिनेश्वरकहे जाते है। 
३४. समस्त जगत् को एक साथ देखनेसेविश्वदृकहो।
३५. सब भूत के ईश्वर होनेसे ( सर्व प्राणीयोंके) तथा सर्व जगत् कि लक्ष्मीके ईश होनेसे आपवश्वभूतेशकहे जाते हो। 
३६. जगत्प्रकाशी आपविश्वज्योति भि कहे जाते है। 
३७. आप के कोई गुरू तथा स्वामी नही है, इसलिये आपअनीश्वरभि कहे जाते है। 

जिनो जिष्णु रमेयात्मा विश्वरीशो जगत्पति:।अनंत जिद चिन्त्यात्मा भब्य बन्धुरऽ बन्धन:॥६॥
३८. आपने कर्म शत्रु तथा कषायोंको जित लिया है, इसलिये आप"जिन" है।
३९. आप विजयी है, इसलिए आप"जिष्णु" है।
४०. आप के आत्मा कि कोई सिमा नही, इसलिये आप"अमेयात्मा" भि कहे जाते है।
४१. आप समस्त विश्व के आराध्य है, इस लिये " विश्वरीश" है।
४२. जगत के भि स्वामी है, इसलिए"जगत्पति" है।
४३. मोक्ष मे बाधा लाने वाले ग्रह अनंत पर विजयी होने से, तथा अनंतज्ञान को पाने से, आप"अनंतजित" भि कहलाते है।
४४. आप मे आत्मा का यथार्थ स्वरुप क्या होगा इसकि कल्पना तथा चिंतन करना कि अन्य प्राणियोंमे नही है, इसलिए हे प्रभू, आप"अचिन्त्यात्मा हो।
४५. आप सब जीवोंपर बन्धुसमान करुणा रखते है, इसलिये आप"भव्यबन्धू "कहलाते है।
४६. मोक्ष जाने से रोकनेवाले घातिया कर्मोसे जो इतर प्राणी बंधे हुए है, वैसे आप बंधे हुए नही है, इसलिये आप"अबन्धन " भि कहे जाते है।

युगादि पुरुषो ब्रह्मा पंच ब्रह्म मय: शिव:। पर: परतर: सूक्ष्म: परमेष्ठी सनातन:॥७॥
४७. कर्मभूमीमे पुरुषार्थ करना होता है, और आप कर्मभूमी के प्रारंभ अर्थात उस धारणा से युग के प्रारंभ मे उत्पना हुए है, इसलिए आप" युगादिपुरुषकहलाते है।
४८. आपसे हि यह विश्व बढा है इसलिये आप"ब्रह्मा" कहे जाते है।
४९. आप अकेलेहि पंच परमेष्ठीस्वरुप है, इसलिये आप"पंचब्रह्म" कहे जाते है।
५०. आप परम शुध्द है, इसलिये "शिव" भि कहे जाते है।


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