जैन धर्म में १६ सतियां
#1

ब्राह्मी चंदनबालिका भगवती, राजीमती द्रोपदी !
कौशल्या च मृगावती च सुलसा, सीता सुभद्रा शिवा !!
कुन्ती शीलवती नलस्यदयिता, चूला प्रभावत्यपि !
पद्मावत्यपि सुन्दरी प्रतिदिनं, कुर्वन्तु वो मंगलम् !!


ये छन्द अनेक लोग अपनी प्रभात - प्रार्थना में शामिल करते हैं !
इन सोलह सतियों में से
ब्राह्मी, सुन्दरी, चन्दनबाला आदि जैन समाज में ही मान्य हैं तो
दमयन्ती, कौशल्या, सीता, कुन्ती, द्रोपदी आदि को जैनेतर समाज में भी श्रद्धास्पद स्थान प्राप्त है !
कुछ बाल ब्रह्मचारिणी हैं तो
कुछ गृहस्थ हुई एक पतिव्रता है !
सुभद्रा, सीता, द्रोपदी, शिवा आदि के जीवन में शील परीक्षा के कठिन क्षण भी उपस्थित हुए तो
कुछ का जीवन सामान्य है !
कुछ स्वर्गगामिनी हुई तो
कुछ मोक्ष पधारी !

इन में सें अधिकांश पारिवारिक पृष्ठ भूमि से भी परस्पर जुड़ी हुई हैं !
ब्राह्मी - सुन्दरी और प्रभावती - पद्मावती - मृगावती - शिवा ये सगी बहिने थी तो
मृगावती और चन्दनबाला में
मौसी - भाणजी का रिश्ता था !
इससे भी अधिक
कौशल्या - सीता व कुन्ती - द्रोपदी में
सास-बहु का सम्बन्ध था !

सोलह सतियों में से
ब्राह्मी और सुन्दरी आदिनाथ प्रभु के शासन में एवं
दमयन्ती धर्मनाथ प्रभु के शासन में हुई !
कौशल्या व सीता मुनिसुव्रत स्वामी के एवं
कुन्ती व द्रोपदी परमात्मा अरिष्टनेमि के शासनकाल मेें हुई !
शेष नौ सतियाँ परमात्मा महावीर के शासन में हुई, जिन्होनें अपनी संस्कार की सुवास से संपूर्ण धर्म संघ को महकाया !
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