१०८ प्रकारसे संवर कैसे होता है :-
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१०८ प्रकारसे संवर कैसे होता है  :-

गुप्ती, समिती, धर्म, अनुप्रेक्षा, परिषहजय और चारित्र्य यह संवर के उपाय है। 

  तीन गुप्ती :-


सम्यक प्रकारसे विषयोंकि आशा और यश कि अपेक्षा छोडकर मन, काय और वचन कि प्रकृति को रोकना मनोगुप्ती, कायगुप्ती तथा वचनगुप्ती है।

 पाँच समिती :-


 ईर्यासमिती ( चार हात पृथ्वी देखकर चलना), भाषासमिती ( प्रिय , मित हितकर, धर्मानुसार तथा अकाषयिक हि वचन कहना), एषणासमिती ( शुध्द निर्दोष आहार करना), आदाननिक्षेपणसमिती ( पिच्छीसे झाडपोछकर वस्तुको उठाना, रखना ) और व्युत्सर्गसमिती ( जीवरहित स्थानमे मल मूत्र आदिक विसर्जन करना ) यह ५ समिती है।

 दश धर्म :-

 उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम,तप,त्याग,आकिंचन्य और ब्रम्हचर्य यह दशलक्षण धर्म का पालन करना।

 २२ परिषहजय :-

अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व,अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म इन १२ अनुप्रेक्षा अर्थात भावनाओंका नित्य चिंतन करना, क्षुधा, तृषा (पिपासा), शीत,उष्ण, दंशशमक,नाग्न्य, अरती, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना,अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कार--पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन इन २२ परिषहोंको सहन करना 

 पाँच चारित्र्य :-


 सामायिक, छेदोपासना, परिहारविशुध्दी, सुक्ष्मसांपराय और यथाख्यात इन पाँच प्रकारके चारित्र्यसे ५७ प्रकारके आस्रव को रोककर अर्थात नये कर्मोका आगमन रोककर संवर तत्व कि प्राप्ती होती है।


 तीन गुप्ती, पाँच समिती, दशधर्म, बारह भावना, २२ परिषह, १२ तप, ९ प्रायश्चित, ४ विनय, १० वैय्यावृत्य, ५ स्वाध्याय, २ व्युत्सर्ग, १० भेद का धर्मध्यान, ४ भेद का शुक्लध्यान इस १०८ भेदसे संवर होता है ।
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१०८ प्रकारसे संवर कैसे होता है :- - by scjain - 02-18-2015, 08:43 AM

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