प्रवचनसारः गाथा -12, 13
#1

श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः

गाथा -12

असुहोदयेण आदा कुणरो तिरियो भवीय णेरइयो।
दुक्खसहस्सेहिं सदा अभिंधुदो भमदि अचंतं // 12 //


आगे बिलकुल त्यागने योग्य और चारित्रका घात करनेवाला जो अशुभोपयोग है, उसके फलको दिखाते हैं[अशुभोदयेन आत्मा अत्यन्तं भ्रमति] अव्रत, विषय, कषायरूप अशुभोपयोगोंसे परिणमसा यह आत्मा अर्थात् धर्मसे बहिर्मुख संसारी जीव है, वह बहुत कालतक संसारमें भटकता है। कैसा होता हुआ ? कुनरः तिर्यग्नैरयिकः भूत्वा सदा अभिद्रुतः] खोटा (दुःखी-दरीद्री) मनुष्य, तिथंच तथा नारकी होकर हजारों दुःखोंसे हमेशा दुःखी होता हुआ, संसारमें भ्रमण करता है। भावार्थ-शुभोपयोग किसी एक व्यवहारनयके अंगसे धर्मका अंग है, परंतु यह अशुभोपयोग तो धर्मका अंग. किसी तरह भी नहीं है। इसलिये यह अत्यंत ही हेय है, और जो इसमें लगे रहते हैं, वे खोटे मनुष्य, तिथंच, नारकी इन तीन गतियोंमें अनेक दुःखोंसे क्लेशरूप होते हुए सदाकाल भटकते हैं

गाथा -13
अइसयमादसमुत्थं विसयातीदं अणोक्ममणंतं /
अव्वुच्छिण्णं च सुहं सुद्धवओगप्पसिद्धाणं // 13 //


आगे अत्यंत उपादेय शुद्ध उपयोग फल दिखाते हैं -
[शुद्धोपयोगप्रसिद्धानां एतादृशं सुखं] वीतराग-परमसामाग्रिकचारित्रसे उत्पन्न हुए जो अरहंत और सिद्ध हैं, उनके ही ऐसा सुख. विद्यमान है। कैसा है सुख ? [ अतिशयं ] सबसे अधिक है। क्योंकि अनादिकालसे लेकर ऐसा सुख कभी इन्द्र वगैरहकी पदवियोंमें भी अपूर्व आश्चर्य करनेवाला परम आनंदरूप नहीं हुआ। फिर कैसा है ? [आत्मसमुत्थं] अपने आत्मासे ही उत्पन्न हुआ है, पराधीन नहीं है। फिर कैसा है ? [विषयातीतं ] पाँच इंद्रियोंके स्पर्श, रस, गंध, रूप, शब्दस्वरूप जो विषय-पदार्थ उनसे रहित है, संकल्पविकल्परहित अतींद्रियसुख है। फिर कैसा है ? [अनौपम्यं ] उपमासे रहित है, अर्थात् तीन लोकमें जिस सुखके बराबर दूसरा सुख नहीं है / इस सुखकी अपेक्षा दूसरे सब सुख दुःख ही स्वरूप हैं / फिर कैसा है ? [अनन्तं ] जिसका नाश नहीं होता, सदा ही नित्य है / फिर कैसा है ? [अव्युच्छिन्नं] बाधारहित-हमेशा एकसा रहता है / ऐसा सुख शुद्धोपयोगका ही फल है। इससे यह अभिप्राय निकला कि, शुद्धोपयोग सर्वप्रकारसे उपादेय है, और शुभ अशुभोपयोग हेय है। इन दोनोंमें व्यवहारनयसे किसी तरह शुभोपयोग तो उपादेय है, परन्तु अशुभोपयोग तो सर्वथा ही हेय है //

मुनि श्री प्रणम्य सागर जी

Manish Jain Luhadia 
B.Arch (hons.), M.Plan
Email: manish@frontdesk.co.in
Tel: +91 141 6693948
Reply


Messages In This Thread
प्रवचनसारः गाथा -12, 13 - by Manish Jain - 08-01-2022, 08:58 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -12, 13 - by sandeep jain - 08-01-2022, 10:25 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -12, 13 - by sumit patni - 08-14-2022, 08:50 AM

Forum Jump:


Users browsing this thread: 4 Guest(s)