प्रवचनसारः गाथा -19, 20, अरिहंतभगवान का स्वरूप
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श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित 
प्रवचनसार

गाथा -19  (आचार्य जयसेन की टीका) 
तं सव्वट्ठरिट्ठं इट्ठं अमरासुरप्पहाणेहिं ।
जे सद्दहंति जीवा तेसिं दुक्खाणि खीयंति ॥ १९ ॥

अन्वयार्थ- (सव्वट्ठवरिट्ठं) जो कि सभी धर्मों में वरिष्ठ हैं (अमरासुरप्पहाणेहिं) देव और असुर मुख्यजनों से (इट्ठं)  जो स्वीकृत है (तं) उन जिनेन्द्र भगवान् की (जे जीवा) जो जीव (सद्दहंति) श्रद्धा करते हैं (तेसिं) उनके (दुक्खाणि) दुःख (खीयंति) नाश को प्राप्त हो जाते हैं।

गाथा -19 (आचार्य अमृतचंद  प्रवचनसार की टीका)

पक्खीणघादिकम्मो अणंतवरवीरिओ अधिकतेजो।
जादो अणिदिओ सो णाणं सोक्खं च परिणमदि // 19 //


अन्वयार्थ- (पक्खीणघादिकम्मो) जिसके घाति कर्म क्षय हो चुके हैं, (अदिंदिओ जादो) जो अतिन्द्रिय हो गया है (अणंतवरवीरिओ) अनन्त जिसका उत्तम वीर्य है और (अधिगतेजो) अधिक जिसका (केवलज्ञान और केवलदर्शन रूप) तेज है (सो) वह स्वयंभू आत्मा (णाणं सोक्खं च) ज्ञान और सुख रूप (परिणमदि) परिणमन करता है।


आगे कहते हैं, कि यह आत्मा शुद्धोपयोगके प्रभावसे स्वयंभू तो हुआ, परंतु इंद्रियोंके विना ज्ञान और आनंद इस आत्माके किस तरह होता है, ऐसी शंकाको दूर करते हैं, अर्थात् ये अज्ञानी जीव इन्द्रिय विषयोंके भोगनेमें ही ज्ञान, आनंद मान बैठे हैं, उनके चेतावनेके लिये स्वभावसे उत्पन्न हुए ज्ञान तथा सुखको दिखाते हैं-[सः] वह स्वयंभू भगवान् आत्मा [अतीन्द्रियः जातः 'सन्'] इन्द्रिय ज्ञानसे रहित होता हुआ [ज्ञानं सौख्यं च] अपने और परके प्रकाशने (जानने)वाला ज्ञान तथा आकुलता रहित अपना सुख, इन दोनों स्वभावरूप [परिणमति] परिणमता है / कैसा है भगवान् / [पक्षीणघातिकर्मा] सर्वथा नाश किये हैं, चार घातिया कर्म जिसने अर्थात् जबतक घातियाकर्म सहित था, तबतक क्षायोपशमिक मत्यादिज्ञान तथा चक्षुरादिदर्शन सहित था / घातियाकर्मोके नाश होते ही अतीन्द्रिय हुआ। फिर कैसा है ? [अनन्तवरवीयः] मर्यादा रहित है, उत्कृष्ट बल जिसके अर्थात् अंतरायके दूर होनेसे अनन्तबल सहित है / फिर कैसा है ? [अधिकतेजाः ] अनंत है, ज्ञानदर्शनरूप प्रकाश जिसके अर्थात् ज्ञानावरण दर्शनावरण कर्मके जानेसे अनंतज्ञान, अनंतदर्शनमयी है, और समस्त मोहनीयकर्मके नाशसे स्थिर अपने स्वभावको प्राप्त हो गया है / भावार्थ-इस आत्माका स्वभाव ज्ञान-आनंद है, परके अधीन नहीं है, इसलिये निरावरण अवस्थामें ही इन्द्रियविना ज्ञान, सुख स्वभावसे ही परिणमते हैं / जैसे सूर्यका स्वभाव प्रकाश है, वह मेघपटलोंकर टैंक जानेसे हीन प्रकाश होजाता है, लेकिन मेघ समूहके दूर होजाने पर स्वाभाविक प्रकाश हो जाता है, इसी प्रकार इस आत्माके भी इन्द्रिय-आवरण करनेवाले कर्मोंके दूर होजानेसे स्वामाविक (किसीके निमित्त विना) ज्ञान तथा सुख प्रगट होजाता है |

गाथा -20
सोक्खं वा पुण दुक्खं केवलणाणिस्स णत्थि देहगदं /
जम्हा अदिदियत्तं जादं तम्हा दु तं णेयं // 20 //


अन्वयार्थ- (केवलणाणिस्स) केवलज्ञानी के (देहगदं) शरीर सम्बन्धी (सोक्खं) सुख (वा पुण दुक्खं) या दु:ख (णत्थि) नहीं हैं (जम्हा) क्योंकि (अदिंदियत्तं जातं) अतीन्द्रियता उत्पन्न हुई है (तम्हा दु तं णेयं) इसलिए ऐसा जानना चाहिए।

आगे जबतक आत्मा इंद्रियोंके आधीन है, तबतक शरीरसंबंधी सुख, दुःखका अनुभव करता है। यह केवलज्ञानी भगवान् अतीन्द्रिय है, इस कारण इसके शरीरसंबंधी सुख, दुःख नहीं है, ऐसा कहते हैं-[ केवलज्ञानिनः] केवलज्ञानीके [ देहगतं] शरीरसे उत्पन्न हुआ [सौख्यं] भोजनादिक सुख [वा पुनः दुःखं] अथवा भूख वगैरःका दुःख [नास्ति] नहीं है [यस्मात् ] इसी कारणसे इस केवली-भगवानके [अतीन्द्रियत्वं जातं] इन्द्रियरहित भाव प्रगट हुआ [तस्मात्तु] इसीलिये तत जेय] तत् अर्थात् अतीन्द्रिय ही ज्ञान और सुख जानने चाहिये /

भावार्थ-जैसे आग लोहेके गोलेकी संगति छूट जानेपर घनकी चोटको नहीं प्राप्त होती, इसी प्रकार यह आत्मा भी लोहके पिण्डसमान जो इन्द्रियज्ञान उसके अभावसे संसारसंबंधी सुख दुःखका अनुभव नहीं करता है। इस गाथामें केवलीके कवलाहारका निषेध किया है |



मुनि श्री प्रणम्य सागर जी 

अरिहंतभगवान का स्वरूप


19 इस गाथा में बताया हैं कि अगर सच्चे देव पर हमारा सच्चा श्रद्धान हो तो संसार के सब दुख औऱ अनिष्ट स्वयं ही दूर हो जाते है।
19 जब भगवान केवलज्ञानी हो जाते है, तो उनकी आत्मा में एक अत्यंत तेज प्रकाश पैदा हो जाता हैं। जिससे वे अतीन्द्रिय हो जाते है अर्थात सब इंद्रियों से परे,और अपने उस तेज अतीन्द्रिय ज्ञान से सब कुछ जानते हैं।
20 इस गाथा में आगे बताया हैं कि चूंकि भगवान अतीन्द्रिय हो जाते हैं और सम्पूर्ण ज्ञान के धारी हैं तो उनको शरीर का कोई भी सुख दुख नहीं होता अर्थात वे मुक्तात्मा ,देह रहित हो जाते हैं।


Manish Jain Luhadia 
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प्रवचनसारः गाथा -19, 20, अरिहंतभगवान का स्वरूप - by Manish Jain - 08-02-2022, 12:16 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा -19, 20, - by sandeep jain - 08-02-2022, 12:26 PM
RE: प्रवचनसारः गाथा -19, 20, अरिहंतभगवान का स्वरूप - by sumit patni - 08-14-2022, 11:15 AM

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