प्रवचनसारः गाथा -26, 27 आत्मा और ज्ञान के एकत्व-अन्यत्व
#1

श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचितः प्रवचनसारः
आचार्य कुन्दकुन्द विरचित
प्रवचनसार

गाथा -26 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -27 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )

सव्वगदो जिणवसहो सब्वे वि य तग्गया जगदि अट्ठा /
णाणमयादो य जिणो विसयादो तस्स ते भणिया // 26 //

अन्वयार्थ- (जिणवसहो) जिनवर (सव्वगदो) सर्वगत है (य) और (जगदि) जगत के (सव्वे वि अट्ठा) सर्व पदार्थ (तग्गया) जिनवरगत हैं, (जिणो णाणमयादो) क्योंकि जिन ज्ञानमय (भणिया) कहे गये हैं। हैं, (य) और (ते) वे सब पदार्थ (विसयादो) ज्ञान के विषय हैं, इसलिए (तस्स) जिनके विषय भूतज्ञानमयत्वात् जिनवृषभो देशजिनेभ्यो निर्जितसकलकर्मत्वेन प्रधानो मुक्तात्मा सर्वगतः ।

आगे जिस तरह ज्ञान सर्वगत है, उसी तरह आत्मा भी सर्वगत है, ऐसा कहते हैं
[ज्ञानमयत्वात् ] ज्ञानमयी होनेसे [जिनवृषभः] जिन अर्थात् गणधरादिदेव उनमें वृषभ (प्रधान) [जिनः] सर्वज्ञ भगवान् [सर्वगतः] सब लोक अलोकमें प्राप्त हैं, [च और [तस्य विषयत्वात् ] उन भगवानके जानने योग्य होनेसे [जगति] संसारमें [सर्वेपि च ते अर्थाः] वे सब ही पदार्थ [तद्गताः] उन भगवानमें प्राप्त हैं, ऐसा [भणिताः] सर्वज्ञने कहा है //
भावार्थ-
अतीत अनागत वर्तमान काल सहित सब पदाथोंके आकारोंको (पर्यायोंको) जानता हुआ, ज्ञान सर्वगत कहा है, और भगवान् ज्ञानमयी हैं, इस कारण भगवान भी सर्वगत ही हैं, और जिस तरह आरसीमें घटपटादि पदार्थ झलकते हैं, वैसे ज्ञानसे अभिन्न भगवानमें भी सब पदार्थ प्राप्त हुए हैं, क्योंकि वे पदार्थ भगवानके जानने योग्य हैं / निश्चयकर ज्ञान आत्माप्रमाण है, क्योंकि निर्विकार निराकुल अनन्तसुखको आत्मामें आप वेदता है, अर्थात् अनुभव करता है / ज्ञान आत्माका स्वभावरूप लक्षण है, इस कारण वह अपने ज्ञानस्वरूप स्वभावको कभी नहीं छोड़ता / समस्त ज्ञेया-(पदार्थ )कारोंमें प्राप्त नहीं होता, अपनेमें ही स्थिर रहता है। यह आत्मा सब पदार्थोंका जाननेवाला है, इसलिये व्यवहारनयसे सर्वगत (सर्वव्यापक ) कहा है, निश्चयसे नहीं / इसी प्रकार निश्चयनयसे वे पदार्थ भी इस आत्मामें प्राप्त नहीं होते, क्योंकि कोई पदार्थ अपने स्वरूपको छोड़कर दूसरेके आकार नहीं होता, सब अपने अपने स्वरूपमें रहते हैं। निमित्तभूत ज्ञेयके आकारोंको आत्मामें ज्ञेयज्ञायक संबंधसे प्रतिबिंबित होनेसे व्यवहारसे कहते हैं, कि सब पदार्थ आत्मामें प्राप्त हो जाते हैं / जैसे आरसीमें घटादि पदार्थ प्रतिबिम्ब निमित्तसे प्रवेश करते हैं, ऐसा व्यवहारमें कहा जाता है, निश्चयसे वे अपने स्वरूपमें ही रहते हैं। इस कथनसे सारांश यह निकला, कि निश्चयसे पदार्थ आत्मामें नहीं आत्मा पदार्थोंमें नहीं। व्यवहारसे ज्ञानरूप आत्मा पदार्थोंमें है / पदार्थ आत्मामें हैं, क्योंकि इन दोनोंका ज्ञेय ज्ञायक सम्बन्ध दुर्निवार हैं //


गाथा -27 (आचार्य अमृतचंद की टीका अनुसार)
गाथा -28 (आचार्य जयसेन की टीका अनुसार )


णाणं अप्प त्ति मदं वदि णाणं विणा ण अप्पाणं /
तम्हा णाणं अप्पा अप्पा णाण व अण्णं वा // 27 //


अन्वयार्थ- (णाणं अप्पं) ज्ञान आत्मा है, (त्ति मयं) ऐसा जिनदेव का मत है, (अप्पा विणा) आत्मा के बिना (णाणं ण वट्टदि) ज्ञान नहीं होता, (तम्हा) इसलिए (णाणं अप्पा) ज्ञान आत्मा है, (अप्पा) और आत्मा (णाणं व) ज्ञान है, (अण्णं वा) अथवा अन्य है।

आगे ज्ञान और आत्मा एक है, तथा आत्मा ज्ञान भी है, और सुखादिस्वरूप भी है, ऐसा कहते हैं-[ज्ञानं] ज्ञानगुण [आत्मा] जीव ही है [इति मतं] ऐसा कहा है / [आत्मानं विना] आत्माके विना [ज्ञान] चेतनागुण [न वर्तते] और किसी जगह नहीं रहता [तस्मात् ] इस कारण [ज्ञानं] ज्ञानगुण [आत्मा] जीव है [च] और [आत्मा] जीवद्रव्य [ज्ञानं] चैतन्य गुणरूप है, [वा अन्यत् ] अथवा अन्य गुणरूप भी है /

भावार्थ-
ज्ञान और आत्मामें भेद नहीं है, दोनों एक हैं / क्योंकि अन्य सब अचेतन वस्तुओंके साथ संबंध न करके केवल आत्माके ही साथ ज्ञानका अनादिनिधन स्वाभाविक गाढ़ संबंध है, इस कारण आत्माको छोड़ ज्ञान दूसरी जगह नहीं रह सकता / परंतु आन्मा अनन्तधर्मवाला होनेसे ज्ञान गुणरूप भी है और अन्य सुख़ादि गुणरूप भी है, अर्थात् जैसे ज्ञानगुण रहता है, वैसे अन्य गुण भी रहते हैं / दूसरी बात यह है, कि भगवन्तका अनेकान्त सिद्धान्त बलवान् है। जो एकान्तसे ज्ञानको आत्मा कहेंगे, तो ज्ञानगुण आत्मद्रव्य हो जावेगा, और जब गुण ही द्रव्य हो जावेगा, तो गुणके अभावसे आत्मद्रव्यके अभावका प्रसङ्ग आवेगा, क्योंकि गुणवाला द्रव्यका लक्षण है, वह नहीं रहा, और जो सर्वथा आत्माको ज्ञान ही मानेंगे, तो आत्मद्रव्य एक ज्ञानगुणमात्र ही रह जावेगा, सुखवीर्यादि गुणोंका अभाव होगा / गुणके अभावसे आत्मद्रव्यका अभाव सिद्ध होगा, तब निराश्रय अर्थात् आधार न होनेसे ज्ञानका भी अभाव हो जायगा / इस कारण सिद्धान्त यह निकला, कि ज्ञानगुण तो आत्मा अवश्य है, क्योंकि ज्ञान अन्य जगह नहीं रहता / परंतु, आत्मा ज्ञानगुणकी अपेक्षा ज्ञान है, अन्य गुणोंकी अपेक्षा अन्य है




मुनि श्री प्रणम्य सागर जी


Manish Jain Luhadia 
B.Arch (hons.), M.Plan
Email: manish@frontdesk.co.in
Tel: +91 141 6693948
Reply


Messages In This Thread
प्रवचनसारः गाथा -26, 27 आत्मा और ज्ञान के एकत्व-अन्यत्व - by Manish Jain - 08-03-2022, 08:54 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -27, 28 - by sandeep jain - 08-03-2022, 08:59 AM
RE: प्रवचनसारः गाथा -26, 27 आत्मा और ज्ञान के एकत्व-अन्यत्व - by sumit patni - 08-14-2022, 11:51 AM

Forum Jump:


Users browsing this thread: 2 Guest(s)