प्रवचनसारः ज्ञेयतत्त्वाधिकार-गाथा - 17,18 जीवके अनवस्थितपन
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मुनि श्री प्रणम्य सागर जी  प्रवचनसार गाथा -18 

‘णत्थि गुणोत् ति य कोई’ देखो! कोई ये कोई हिन्दी में बोलते हैं न, कोई आदमी! ये क्या है? प्रा कृत है, यह । कोई गुण ऐसा नहीं है ‘पज्जा ओत् तिह वा’ और ऐसी कोई पर्याय नहीं है वि णा दव्वं ’ जो द्रव्य के बि ना हो जाय े। क्या कहा ? ऐसा कोई गुण नहीं जो द्रव्य के बि ना हो। अब लोग कहते हैं, ज्ञा न, ज्ञा न ,ज्ञा न। समझ आ रहा है? ज्ञा न रहता कहा ँ है? ज्ञा न का आधार कहा ँ है? द्रव्य में! आत्म द्रव्य तो मानते नहीं हैं और ज्ञा न-ज्ञा न चिल्ला ते रहते हैं। ज्ञा न कहा ँ है? बुद्धि में। ये ज्ञा न यहा ँ रहता है। बस खोपड़ी चली गयी, ज्ञा न चला गया । ज्ञा न चला गया तो आत्मा तो थी नहीं, सब चला गया । ज्ञा न गुण है, दर्श न गुण है, ज्ञा न और दर्श न जो हमारी प्रक्रिया चल रही है, ये कहा ँ है? आत्म द्रव्य के बि ना नहीं हो सकती, क्योंकि गुण कभी भी द्रव्य के बि ना नहीं होते और पर्याय भी बि ना द्रव्य के नही होती।

द्रव्य का द्रव्यत्व, द्रव्य का अस्तित्व भाव है
अब जिस तरीके का भी हमारा ज्ञा न है, मति ज्ञा न, श्रुत ज्ञा न ये सब उसकी पर्याय हैं। ये पर्याय भी आत्म द्रव्य के बि ना नहीं हैं। चक्षु दर्श न, अचक्षु दर्श न जो ये दर्श न हैं, ये भी हमारे द्रव्य के बि ना नहीं हैं। आत्म द्रव्य के बि ना कभी भी ये ज्ञा न नहीं होता, कभी भी दर्श न नहीं होता। इसलि ए आचार्य कहते हैं- ‘दव्वत्तं पुण भावो द्रव्यत्वं ’ देखो पहले भी बताया था न आपको त्वं प्रत्यय लगता है- उसके भाव के लि ए। द्रव्य और द्रव्यत्व। द्रव्यत्व कहने का मतलब द्रव्य का जो भाव है, जिससे द्रव्य हमें पकड़ में आता है। वो द्रव्य का भाव ही उसका अस्तित्व भाव है। माने हम द्रव्यत्व कहे या द्रव्य का स्व रूप से अस्तित्व कहे, एक ही बात है। जो अस्तित्वपना है, अस्ति भाव है वह ी उस द्रव्य का द्रव्यत्व भाव है। द्रव्य का जो द्रव्यत्व है, वह पुण भावो भाव का मतलब यहा ँ पर गुण है माने द्रव्यत्व जो है, वह ी पुण क्या है! वह ी उसका गुण है। द्रव्य का गुण क्या है? द्रव्यत्व। द्रव्यत्व का मतलब अस्तित्व। अस्तित्व का मतलब हमेशा बना रहना। यह ी उसका गुण है। ‘तम्हा दव्वं सयं सत्ता ’, तम्हा माने इसलिए, द्रव्वं सयं माने स्वयं सत्ता है माने द्रव्य और सत्ता अलग अलग नहीं हैं। गुण और गुणी का भेद है। सत्ता उसका गुण है और द्रव्य वह गुणी है। जिस गुणी के अन्दर वह गुण रहता है। उसी तरह से द्रव्य के अन्दर वह सत्ता गुण हमेशा विद्यमान रहता है। यहा ँ पर जिसे सत्ता कहा जा रहा है, वह ी द्रव्यत्व है। त्व प्रत्यय उस द्रव्य के भाव को बताने वा ला होता है।
द्रव्य स्वयं सत्ता रूप है
द्रव्य का भाव , वह ी उसका अस्तित्व आत्म द्रव्य, यह तो एक द्रव्य हो गया और इस द्रव्य का द्रव्यत्व माने उसका अस्तित्व, उसकी सत्ता । यह जो आत्म द्रव्य की सत्ता है, वह सत्ता द्रव्य से पकड़ में आएगी। द्रव्य से सत्ता पकड़ में आएगी, सत्ता से द्रव्य पकड़ में आएगा क्योंकि गुण और गुणी अलग-अलग नहीं होते। जैसे हमने कहा आपकी ये सफेद शर्ट र्ट। अब आपको सफेदी पकड़नी है, तो सफेदी अलग से पकड़ में नहीं आएगी। शर्ट र्ट पकड़ोगे तो सफेदी पकड़ में आएगी। जो सफेदी है, वह ी उसका वस्त्र है और जो वस्त्र है, वह ी उसकी सफेदी है। ऐसे ही जो द्रव्य है वह ी उसका सत्ता है और जो सत्ता है वह ी उसका द्रव्य है। लेकि न फिर भी दोनों में अन्तर है क्योंकि सफेदी वस्त्र का गुण है। सफेद रूप जो वस्त्र का आकार है, वह उसकी पर्याय है। एक सफेद रूप कुर्ता है, एक सफेद रूप शर्ट र्ट है। ये सब क्या हो गयी उसकी पर्याय हो गयी। सफेदी गुण हो गया , सफेद वस्त्र द्रव्य हो गया और सफेद जो उसकी आकृति है या अलग-अलग गुणों के साथ उसका जो परि णाम है, वह उसकी पर्याय हो गयी। अतः कभी कोई भी द्रव्य होगा वह गुण और पर्याय ों के बि ना नहीं रहेगा। स्वर्ण पना, स्वर्ण होना, स्वर्ण क्या हो गया , द्रव्य हो गया , पीलापन उसका गुण हो गया । अब वो कि सके साथ रहे, चाह े वह कुँडल के रूप में हो, चाह े वह बि स्कि ट के रूप में हो, चाह े वह हा र के रूप में हो, चाह े मुकुट के रूप में हो। ये सब उसकी क्या हो गयी? पर्याय हो गयी। स्वर्ण के बि ना तो नहीं हुई। स्वर्ण के साथ में ही उसका पीलापन आदि गुण रह रहे हैं और उसकी ये अनेक पर्याय रह रही हैं। गुणों के बि ना द्रव्य का अस्तित्व, पर्याय के बि ना द्रव्य का अस्तित्व नहीं होता। इसलि ए यहा ँ कहा गया है कोई भी गुण ऐसा नहीं जो कभी द्रव्य के बि ना रहे। मानो आपको पीलापन देखना है, पीलापन कहीं भी मि लेगा तो कि सी न कि सी द्रव्य के साथ ही मि लेगा। पीला गुण अलग नि काल कर रख दो, सफेद गुण अलग नि काल कर रख दो। ये कभी सम्भव नहीं है, तो वह ी यहा ँ कहा जा रहा है। द्रव्य से सत्ता को हम पृथक नहीं कर सकते। जो सत्ता है वह ी उसका द्रव्यत्व है और जो द्रव्यत्व है वह ी उसकी सत्ता है इसलि ए द्रव्य और सत्ता स्वय ं एक दूसरे के साथ मि ले हुए हैं। ‘तम्हा दव्वं सयं सत्ता ’ इसलि ए द्रव्य स्वय ं सत्ता रूप है। बस अपनी सत्ता महसूस करो, मेरी सत्ता है। मेरी सत्ता कोई मि टा नहीं सकता है। इतनी तो हूँक भरो अपने अन्दर। हूँक भरनी पड़ेगी अपने अन्दर। हूँक जानते हो, जैसे मैं! मैं की हूँक भरते हो न, मैं ये हूँ, ऐसे ही हूँ कि भरना! मैं द्रव्य हूँ, मैं सत्ता रूप हूँ, मेरी सत्ता कोई मि टा नहीं सकता। अभी तक तो हूँक भरते थे मैं तुमसे बड़ा हूँ। मैं तुझसे लड़ूँगा, मैं तुझको नहीं छोडूँगा, अब क्या हूँक भरना? मैं सत्ता रूप हूं, मैं द्रव्य हूँ, मेरा अस्तित्व है, मेरी सत्ता कोई मि टा नहीं सकता। तम्हा दव्वं सयं सत्ता ! तम्हा दव्वं सयं सत्ता ! तम्हा दव्वं सयं सत्ता ! दव्वं सयं सत्ता ! इतना तो या द कर लो। द्रव्य स्वय ं सत्ता है, आपको दूसरी सत्ता हथिया ने की कोई आवश्यकता नहीं है। अपनी सत्ता तो प्राप्त कर लो, दूसरे की सत्ता कैसे मि लेगी। सब दूसरे की सत्ता हथिया ने में पड़े हैं। अपनी सत्ता का कि सी को कोई भान नहीं हो रहा है। इसी को कहते हैं आगे:-

पर्या य का जनन भी कब कौन होई? लो, द्रव्य के बि न नहीं गुण होय कोई।
द्रव्यत्व ही तब रहा ध्रुव जन्मनाशी, सत्ता स्वरूप खुद द्रव्य अतः वि भासी।।

Manish Jain Luhadia 
B.Arch (hons.), M.Plan
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