श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं
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तीर्थंकर भगवान के द्वारा श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं कही गई है, जिनमें निश्चय से अपनी अपनी प्रतिमा सम्बन्धी गुण, पूर्व प्रतिमा के गुणों के साथ क्रम से वृद्धि को प्राप्त होते हुए स्थित होते हैं। अर्थात पांचवीं प्रतिमाधारी उससे पहले की चार प्रतिमाओं का पालन भी अवश्य करता है।

प्रथम प्रतिमा - दर्शन प्रतिमा - दोषरहित सम्यग्दर्शन का धारक, संसार, शरीर और भोगों से विरक्त पंचपरमेष्ठी का सेवक, *अष्ट मूलगुणों का धारक* दार्शनिक श्रावक है।
द्वितीय प्रतिमा - व्रत प्रतिमा - जो शल्य रहित होता हुआ अतिचार रहित *पांच अणुव्रतों को और सात शीलव्रतों को धारण* करता है, गणधर देव उसे व्रतिक श्रावक कहते हैं।
तृतीय प्रतिमा - सामयिक प्रतिमा - चारों दिशाओं में तीन-तीन आवर्त, चार प्रणाम, कायोत्सर्ग से खड़े होकर, यथाजात (निर्ग्रन्थ/परिग्रह का त्यागी होकर), दो बार बैठकर नमस्कार करता है, मन, वचन, काय को शुद्ध रखकर, *तीनों संध्याओं में* वंदना करता है वह सामयिक प्रतिमाधारी है।
चतुर्थ प्रतिमा - प्रोषधोपवास प्रतिमा - प्रत्येक मास में चारों पर्व के दिनों में अपनी शक्ति को नहीं छिपाकर प्रोषध नियम को करता हुआ एकाग्रता में तत्पर रहता है, वह प्रोषध प्रतिमाधारी है।
पंचम प्रतिमा - सचित्त त्याग प्रतिमा - जो दयालु कच्चे मूल, शाक, कोंपलों, क़रीर/गाँठ, जमीकंद, फूल और बीजों को नहीं खाता है वह सचित्त त्याग प्रतिमाधारी है। *खाने लायक को प्रासुक करके खाता है, पानी भी गरम करके पीता है*।
छठी प्रतिमा- रात्रिभुक्ति त्याग प्रतिमा - प्राणियों पर दयालु चित्त होता हुआ रात्रि में चारों प्रकार के आहार को नहीं खाता है, *अनुमोदना भी नहीं करता*।
सातवीं प्रतिमा - जो शरीर को मल का बीज, मल का कारण, मल झराने वाला, दुर्गन्धयुक्त और ग्लानि युक्त देखता हुआ कामसेवन से विरत होता है वह ब्रह्मचर्य प्रतिमाधारी कहलाता है।
आठवीं प्रतिमा - आरम्भत्याग प्रतिमा - जो जीव हिंसा के कारण नौकरी, खेती, व्यापार आदि आरम्भ के कामों से विरक्त होता है वह आरम्भ त्याग प्रतिमा का धारक है। *(अपने लिए खाना भी नहीं बनाएगा)*
नवीं प्रतिमा - परिग्रह त्याग प्रतिमा- बाह्य दस प्रकार के परिग्रहों में ममता को छोड़कर निर्मोही होता हुआ आत्मस्वरूप में स्थित और संतोष में तत्पर है वह सब ओर से चित्त में स्थित परिग्रह से विरत होता है।
दसवीं प्रतिमा - अनुमति त्याग प्रतिमा- आरम्भ के कार्यों से परिग्रहों में और इस लोक सम्बन्धी कार्यों में अनुमोदना नहीं होती है वह समान बुद्धि का धारक श्रावक निश्चय करके अनुमति त्याग प्रतिमाधारी माना गया है।
ग्यारहवीं प्रतिमा - उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा - घर से निकल मुनियों के वन को जाकर गुरु के पास व्रत ग्रहण करके भिक्षा भोजन करता हुआ तपश्चरण करता है, वस्त्र के एक खंड को धारण करता है वह उत्कृष्ट श्रावक या उद्दिष्ट त्याग प्रतिमाधारी कहलाता है।
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